Banner

बुंदेलखंड (Bundelkhand) में मिट रहा इतिहास! देखरेख के अभाव में खत्म हो रहीं अंग्रेजों के जमाने की धरोहरें

बुंदेलखंड (Bundelkhand) में मिट रहा इतिहास! देखरेख के अभाव में खत्म हो रहीं अंग्रेजों के जमाने की धरोहरें

Bundelkhand news, bundelkhand 24x7, history


विकास की दौड़ में हमीरपुर समेत बुन्देलखंड (Bundelkhand) 

में अंग्रेजों के जमाने की धरोहरे और इमारतें अब अतीत का हिस्सा बन गई है। हमीरपुर शहर के कलेक्ट्रेट में ही अंग्रेजों के शासनकाल में लगाई गई विशाल धूप घड़ी यहां क्षतिग्रस्त हो चुकी है। ये घड़ी अष्टधातु की है जिसे कई बार चोरी करने की कोशिशें हुई है। अंग्रेजी शासनकाल में बना एतिहासिक सुभाष बाजार का एक गेट भी ढहाया जा चुका है।

हमीरपुरः बुन्देलखंड (Bundelkhand) के हमीरपुर में अंग्रेजों के जमाने की धरोहरें पर अतीत का हिस्सा बनने के मुहाने आ गई हैं। यहां कलेक्ट्रेट परिसर में अष्टधातु से निर्मित विशाल धूप घड़ी देखरेख के अभाव में खस्ताहाल हो गई है। इसके तमाम पार्ट्स गायब है। इसके साथ ही बुन्देलखंड (Bundelkhand) के कई इलाकों में तमाम एतिहासिक धरोहरें और भवनों का अस्तित्व खत्म हो गया है। हमीरपुर की स्थापना के दो सौ साल बीत चुके है। वर्ष 1823 में हमीरपुर को स्वतंत्र जिला बनाया गया था। यहां मि.एम.एन्सले पहले अंग्रेज शासक थे।

जिले का प्रशासनिक पर्यवेक्षण सेन्ट्रल बोर्ड के तहत था। इसका मुख्यालय उस जमाने में इलाहाबाद में था। इससे दो साल पूर्व ब्रिटिश शासक मि.एन्सले ने, वर्ष 1821 में परगना हमीरपुर जिला नव बुन्देलखण्ड (Bundelkhand) के राजस्व गांव मेरापुर डांडा के शिवदीन, हीरा, अचल व मान्धाता से 65 बीघा जमीन 70 रुपये चांदी के फर्रुखाबादी सिक्कों के बदले में बंगला, अस्तबल, बाग व अन्य मकान बनवाने के लिये पट्टे पर ली थी। इसके बाद कुछ और जमीन सहित 375 रुपये चांदी के सिक्कों से इन्हीं लोगों से खरीदी गयी थी। मि.एन्सले के पक्ष में 15 अगस्त 1923 को दोपहर रजिस्ट्रार बांदा के यहां शिवदीन, नम्बरदार व दुर्गादास पटवारी मेरापुर की मौजूदगी में विक्रयनामा की रजिस्ट्री करवाई गई थी।

अंग्रेज कलेक्टर की बेटी के नाम बना सूफीगंज बाजार का गेट

ब्रिटिश शासक मि.एन्सले ने अपनी सारी सम्पत्ति तरौंहा कर्वी के रहने वाले नारायन राव व माधव राव मराठा पेशवा को स्थानांतरित कर दी थी। हमीरपुर के प्रथम ब्रिटिश शासक मि.एन्सले ने जिला मुख्यालय में, अपनी बेटी सोफिया के नाम पर वर्ष 1830 में सूफीगंज बाजार बनवाया था। उन्होंने ही कलेक्ट्रेट प्रांगण में धूपघड़ी स्थापित करायी थी मगर मौजूदा में सूफीगंज का मेन गेट अतिक्रमण के कारण अतीत का हिस्सा बन चुका है। वहीं धूपघड़ी की देखरेख न होने से यह भी बदहाल हो गयी है। जिला मुख्यालय में सैकड़ों साल पुरानी इन दोनो एतिहासिक धरोहरों को बचाने के लिये कोई भी आगे नहीं आ रहा है।

विकास की दौड़ में अतीत का हिस्सा बनी एतिहासिक धरोहरें

रेडक्रास सोसायटी के सचिव जलीस खान ने बताया कि तत्कालीन जिलाधिकारी बी.चन्द्रकला ने अंग्रेजों के जमाने की इस धूपघड़ी को चारो ओर से सुरक्षित कराया था। मगर उसके बाद ध्यान नहीं दिये जाने से इस एतिहासिक धरोहर को लोग गंदा करते है। इतिहासकार डा.भवानदीन का कहना है कि अंग्रेजों के जमाने की बनी इमारतें और धरोहर विकास की दौड़ में अतीत का पन्ना बन चुकी है। जो धरोहरें बची भी है तो उनकी देखरेख भी नहीं की जा रही है। नगर पालिका परिषद के चेयरमैन कुलदीप निषाद ने बताया कि एतिहासिक धरोहरों में साफ सफाई के साथ उन्हें नये लुक में लाया जायेगा।

यह भी पढ़ें:

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ