Banner

14 जनवरी 1931 को बुंदेलखंड के जालियावाला बाग में सभा पर अंग्रेजों का किया था नरसंहार

14 जनवरी 1931 को बुंदेलखंड के जालियावाला बाग में सभा पर अंग्रेजों काकिया था नरसंहार

Bundelkhand News, 14 january, 1931, jaliawalabagh, britishers, cruelty, bundelkhand 24x7


14 जनवरी 1931 को बुंदेलखंड के जालियावाला बाग में सभा पर अंग्रेजों का किया था नरसंहार, सत्याग्रह से डरे अग्रेजों ने देशभक्तों की भीड़ में मशीन गन से बरसाई थी गोलियां, 21 लोग हुए थे शहीद

छतरपुर. बुंदेलखंड का जालियावाला बाग के नाम विख्यात छतरपुर जिले के शहीद स्थल चरण पादुका पर 14 जनवरी के दिन श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाता है और इस दौरान जनप्रतिनिधि और अधिकारी विकास करने की बात करते हैं। लेकिन ९३ वर्ष गुजरने के बाद भी बुंदेलखंड के जालियावाला बाग उपेक्षा का शिकार है।

14 जनवरी 1931 को मकर संक्रांति के मेले में सभा कर रहे लोगों पर मशीनगन और बंदूकों से गोलियां बरसाकर नरसंहार की घटना को अंजाम दिया गया था। इस नरसंहार को बुंदेलखंड का जालियावाला नरसंहार का नाम दिया गया। सत्याग्रह से डरे हुए अंग्रेजों ने बुंदेलखंड के इतिहास के सबसे बड़े नरसंहार की घटना को अंजाम दिया था। स्वतंत्रता मिलने के बाद चरण पादुका बलिदान स्थल पर एक स्मारक बनाया गया। जहां पर लगे हुए एक बोर्ड में बलिदानी देशभक्तों के नाम अंकित हैं। जिनमें अमर शहीद सेठ सुंदर लाल गुप्ता गिलौंहा, धरमदास मातों खिरवा, रामलाल गोमा, चिंतामणि पिपट, रघुराज सिंह कटिया, करण सिंह, हलकाई अहीर, हल्के कुर्मी, रामकुंवर, गणेशा आदि के नाम शामिल हैं।शहीद स्मारक का शिलान्यास तत्कालीन केंद्रीय रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम के द्वारा 8 अप्रेल 1978 को किया गया था। इसके बाद शहीद स्मारक चरण पादुका का अनावरण मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के द्वारा 14 जनवरी 1984 को किया गया। वहीं इसके पहले तत्कालीन प्रदेश मंत्री नाथूराम अहिरवार द्वारा चरण पादुका पर एक विश्राम ग्रह बनवाया था, जिसकी देखरेख नहीं होने पर अब वह जर्जर है।

चरणपादुका जनकल्याण समिति सचिव शंकर सोनी ने बताया कि वह वर्ष १९७५ से लगातार विकास के लिए प्रयासरत हैं और १९८० से लगातार वह स्थल की देखदेख व हर वर्ष कार्यक्रम का आयोजन कराते आ रहे हैं। बताया कि चरण पादुका के विकास के लिए वर्ष १४ जनवरी के लिए अधिकारी, जनप्रतिनिधि आते हैं और यहां के विकास के लिए आश्वासन देते हैं, लेकिन अभी तक यहां पर विकास कार्य नहीं हो सके।

ऐसे भड़की आंदोलन थी आग

30 के दशक में महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन पूरे उफान पर था, गांधी की दांडी यात्रा ने अंग्रेज सरकार के सामने कठिन चुनौती पैदा कर दी थी। पूरे देश की तरह ही बुंदेलखंड में भी सत्याग्रह आंदोलन की चिंगारी भड़क उठी थी। अक्टूबर 1930 को छतरपुर जिले के चरणपादुका नामक कस्बे में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया। इसमें लगभग 60 हजार लोग शामिल हुए और आंदोलनकारी नेताओं ने अपने भाषणों में स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने और लगान का भुगतान न करने की अपील की थी। इसी क्रम में सत्याग्रह की पॉलिसी पर महाराजपुर में दूसरी सभा आयोजित की गई। इस सभा की निगरानी के लिए जिला मजिस्ट्रेट खुद सभा स्थल पर मौजूद था। उसकी उपस्थिति का लोगों पर उल्टा असर हुआ और आक्रोशित भीड़ ने मजिस्ट्रेट की कार पर पथराव कर दिया। मजिस्ट्रेट भीड़ के क्रोध से बड़ी मश्किल से बच पाया था। इस घटना के बाद अनेक लोगों पर मुकदमा चलाया गया, कई लोगों पर जुर्माना भी लगाया गया था और कई लोगों को को सजा भी हुई। इसके बाद जन आक्रोश और बढ़ता गया और कर का भुगतान न करने का अभियान दूसरे क्षेत्रों में भी फैलता चला गया। हालत यहां तक पहुंच गए कि अंग्रेजों को लगान देने से इनकार करने पर राजनगर के पास खजुआ गांव में लोगों पर सरकारी कारिंदों ने गोलियां बरसाईं, इससे लोग भड़क गए और जबाब में पत्थरों और लाठियों से उन्होंने भी हमला कर दिया। सत्याग्रह का आंदोलन इसी तरह से आगे बढ़ता रहा। अक्टूबर माह में बेनीगंज बांध के पास एक विशाल आमसभा का आयोजन किया गया, जिसमें 80 हजार लोगों ने भाग लिया। लगान के विरोध में 4 जनवरी को आंदोलन के नेता लगभग 2 हजार लोगों के साथ नौगांव जाकर गवर्नर जनरल से मिले। गर्वनर जनरल ने सख्ती दिखाते हुए कहा कि लगान तो देना ही पड़ेगा। जिससे लोगों में और आक्रोश बढ़ता गया।

मशीन गन से सभा पर दागी थीं गोलियां

गर्वनर जनरल के जबाव के बाद तो अंग्रेजी हुकूमत के कारिंदे बेलगाम हो गए थे। महाराजपुर से 10 किलोमीटर दूर नौगांव ब्लॉक के ग्राम सिंहपुर में उर्मिल नदी किनारे चरणपादुका स्थल पर लोग 14 जनवरी 1931 मकर संक्रांति के दिन अंग्रेजी हुकूमत द्वारा अनर्गल टैक्स लगाए जाने के विरोध में सभा कर रहे थे। नेता पं. रामसहायं तिवारी और ठाकुर हीरा सिंह की गिरफ्तारी के बाद सभा की अध्यक्षता सरजू दउआ गिलौंहा कर रहे थे। इसकी भनक लगते ही पॉलिटिकल एजेंट कर्नल फिसर एक दर्जन से अधिक वाहनों पर सेना लेकर पहुंचा और मेले में हो रही सभा को सेना ने घेर लिया। आमसभा में शामिल लोगों पर बेरहमी से मशीनगनों और बंदूकों से गोलियों की बौछार कर दी गई। इस गोलीकांड में 21 लोगों की मौत हो गई और 26 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इस नरसंहार के बाद भी अंग्रेजों का अत्याचार नहीं रुका, सत्याग्रह आंदोलन को दबाने के लिए 21 लोग गिरफ्तार किए गए, उनमें से सरजू दउआ को चार वर्ष व बाकी 20 लोगों को ३-३ वर्ष के सश्रम कारवास की सजा सुनाई गई। हालाकि इसमें सैकड़ों क्रांतिकारी शहीद हो गए थे और हजारों लोग घायल हुए थे। उर्मिल नदी का पानी लहू बहने के कारण लाल हो गया था। अंग्रेजी हुकूमत ने इस कांड पर पर्दा डालने के लिए सिर्फ 6 शहीद ही बताए थे और शेष नदी में दफन कर दिए थे।

अभी भी उपेक्षित है शदीद स्मारक

चरणपादुका में संग्रहालय बनाकर शहीदों और स्वतंत्रता सैनानियों के चित्र, उनकी गाथा अंकित करने, बुंदेलखंडी इतिहास से संबंधित पुस्तकालय बनाने, चरणपादुका शिला के ऊपर छतरी लगाने, उर्मिल नदी पर घाट बनाने, पार्क स्थापित करने, मकर संक्रांति मेले को बडा रूप देने की तैयार की गई। लेकिन योजना अमल में नहीं लाई जा सकी। हालाकि तत्कालीन रक्षामंत्री बाबू जगजीवन राम ने शिलान्यास किया और मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने उद्घाटन किया था। तब गांव के कुछ लोगों ने स्मारक के लिए जमीन दान में दी थी, लेकिन कोई काम न होने से उन्होंने खेती करना शुरू कर दिया है।

ये भी पढ़े:

Panna News: BJP ने मंदिरों में चलाया स्वच्छता अभियान

अयोध्या से 500 KM दूर सागर में विशाल देव स्थान का जीर्णोद्धार


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ