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यूपी के सरकारी स्कूलों में ये हो क्या रहा है? लगातार दूसरे साल घट गए 12 लाख बच्चे, आखिर गए कहां

Lucknow : यूपी के सरकारी स्कूलों में लगातार दूसरे दूसरे साल 12 लाख बच्चे घट गए। सरकारी स्कूलों में बच्चों की कमी ने चिंता बढ़ा दी है। दो सालों में सरकारी स्कूलों से करीब 24 लाख बच्चे कम हो गए हैं। सरकारी स्कूलों में बच्चों को बढ़ाने की योजना के बीच यह खबर चौंका रही है।

                       


 उत्तर प्रदेश में पहली कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक के सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या में गिरावट आने लगी है। संख्या बढ़ाने के तमाम प्रयासों के बावजूद लगातार दूसरे साल बच्चों की संख्या में कमी आई है। पिछले साल सरकारी स्कूलों में 24 लाख बच्चे कम हुए थे। इस साल दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या 12 लाख और कम हो गई है। पिछले दो साल छोड़ दिए जाएं तो इससे पहले सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही थी। सरकार इसे अपनी उपलब्धियों में गिना रही थी। खुद बेसिक शिक्षा विभाग ने दो साल पहले ‘एक्स’ पर इसको पोस्ट किया था और बताया था कि 6 साल में बच्चों की संख्या 40 लाख बढ़ गई।

दूसरी तरफ, बेसिक स्कूलों की शिक्षा के स्तर पर अध्ययन करने वाली संस्था प्रथम ने अपनी 'असर' रिपोर्ट में बच्चों की संख्या बढ़ने का जिक्र किया था। कोविड के दौरान 2018 से 2022 तक के अध्ययन पर यह रिपोर्ट जारी की गई थी। इसमें बताया गया था कि सरकारी स्कूलों में 6 से 14 साल तक के बच्चों की संख्या का प्रतिशत 44.7 से बढ़कर 59.6 प्रतिशत हो गया है।

ऐसे आई गिरावट

बच्चों की संख्या में बढ़ोत्तरी 2022-23 तक जारी रही। लेकिन अगले ही साल 2023-24 में बच्चों की संख्या तेजी से घट गई। इस पर महानिदेशक स्कूल शिक्षा कंचन वर्मा ने सभी बीएसए को पत्र लिखकर 2023-24 में कम हुए बच्चों की संख्या पर चिंता जताई थी। एक साल में 24 लाख बच्चे कम हो गए थे। बच्चों की संख्या 2022-23 में 1.92 करोड़ थी। यह संख्या 2023-24 में घटकर 1.68 करोड़ गई। इस पर कई जिलों में बीएसए ने शिक्षकों को नोटिस भी जारी की थी और अगले सत्र से संख्या बढ़ाने के निर्देश दिए थे।

इस साल अप्रैल से लेकर जुलाई तक बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए कई बार प्रयास किए गए। स्कूल चलो अभियान भी चला लेकिन संख्या बढ़ने के बजाय और कम हो गई है। स्कूल चलो अभियान जुलाई में खत्म हो चुका है। अब तक सरकारी स्कूलों में 1.56 लाख बच्चों के ही दाखिले हो सके हैं। हाल ही में खुद बेसिक शिक्षा मंत्री ने विधान सभा में एक सवाल के जवाब में यह आंकड़ा पेश भी किया था।

क्यों घट रही संख्या?

गांव-गांव में निजी स्कूल लगातार खुलते जा रहे हैं। सरकारी स्कूलों की बजाय निजी स्कूलों को अभिभावक प्राथमिकता देते हैं। जानकारों के मुताबिक कोविड में आर्थिक तंगी के कारण कई अभिभावक प्राइवेट स्कूलों की फीस भरने में सक्षम नहीं थे। इसलिए उन्होंने सरकारी स्कूलों का रुख किया। कोविड खत्म हुआ तो फिर अभिभावकों ने प्राइवेट स्कूलों का रुख करना शुरू कर दिया। वहीं कक्षा एक में छह साल की उम्र पूरी होने पर ही दाखिले लेकर सख्ती से भी संख्या पर असर पड़ा है। पहले कुछ माह उम्र कम ज्यादा होने पर भी शिक्षक दाखिला ले लेते थे।

साभार : नवभारत टाइम्स 


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