भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव 7 अप्रैल से लेकर 14 अप्रैल के मध्य हो जाएगा और इसी के चलते जिन राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों का निर्णय किया जाना है, वह भी फैसला राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के साथ-साथ ही घोषित कर दिया जाएगा ऐसा सूत्रों का स्पष्ट मानना है। परंतु इसी बीच धारा 370 के हटाए जाने के तथा लोकसभा और राज्य सभा में वक्फ संशोधन बिल के पास होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का आत्म विश्वास 100 गुणा बढ़ गया है। इसी आत्म विश्वास के चलते समझा जाता है कि, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने राजनैतिक जीवन के आदर्श पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की छोटे-छोटे राज्यों की भाजपाई थ्योरी पर काम करना शुरू कर दिया है। सूत्रों का कहना है कि, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दोनों एकमत हैं कि, 1955 से पहले राज्य पुनर्गठन आयोग के सामने बुंदेलखंड राज्य की मांग रखी गई थी, उसे तब गंभीरता से नहीं लिया गया था, लेकिन अब समय आ गया है कि, बुंदेलखंड की धरती में भाजपा का विकास मॉडल तथा हिन्दुत्व का एजेंडा डिमांड पर है। इसलिए 1970, सन 2000, सन 2008 तथा सन 2010 में पृथक बुंदेलखंड राज्य की लगातार उठाई गई मांग आज की भौगोलिक स्थिति में तर्क संगत है, इसलिए, इसके पहले कि, बुंदेलखंड राज्य की मांग को दूसरे राजनैतिक दलों द्वारा फिर से उठाई जाए और आंदोलन का स्वरूप इसका तरीका हो, तो फिर भाजपा को निर्णायक होकर राजनैतिक फैसला लेने में अब देरी नहीं करनी चाहिए। सूत्रों का कहना है कि, भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से बुंदेलखंड क्षेत्र उत्तर प्रदेश और मप्र के 13 जिलों में फैला हुआ है, जिसमें उत्तर प्रदेश के झांसी, ललितपुर, जालौन, महोबा, हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट और मप्र के टीकमगढ़, निवारी, सागर, दमोह, पन्ना तथा छतरपुर जिले शामिल हैं। वीरता, लोक संस्कृति और बुंदेली भाषा के लिए विश्व स्तर पर ख्याति प्राप्त करने वाला यह क्षेत्र विकास में पिछड़ा हुआ है, इसे राजनैतिक परिपक्वता का आधार देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सबसे पहले केन- बेतवा लिंक परियोजना जिसकी लागत 45 हजार करोड़ है उसे क्रियान्वित करते हुए यह संदेश दिया है कि, बुंदेलखंड में विकास के सभी मानकों पर जितनी कमियां है उसे दूर कर दी जाएगी। प्रधानमंत्री के इस संदेश में यह विजन भी छुपा हुआ है कि, यदि बुंदेलखंड को पृथक राज्य बना दिया जाए, तो एक और गरीबी झेल रहे बुंदेलखंड को विकास की उड़ान मिलेगी और युवाओं का भविष्य संवर जाएगा, साथ ही हिन्दुत्व के एजेंडे पर उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह छतरपुर के बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री मुख्यमंत्री के रूप में मैदान में उतार दिया जाएगा। धीरेन्द्र शास्त्री की राजनैतिक ताजपोशी की शुरूआत तो प्रधानमंत्री ने स्वयं बागेश्वरधाम जाकर कर दी है, लेकिन बागेश्वरधाम में प्रधानमंत्री की उपस्थिति से राजनीति में नए अविष्कार के किरदार धीरेन्द्र शास्त्री ही होंगे, जो हिन्दू राष्ट्र, हिन्दू राष्ट्र की मांग पर अड़े रहेंगे और उन्हें नए राज्य बुंदेलखंड का मुख्यमंत्री बनाकर प्रधानमंत्री 2028 की विधानसभा और 2029 की लोकसभा को अपने लिए सुनिश्चित कर लें तो आश्चर्यजनक कोई घटना नहीं होगी। ठीक इसी तरह लंबे समय से महाराष्ट्र जैसे विशाल राज्य को दो हिस्सो में बांटते हुए विदर्भ को स्वतंत्र राज्य बनाने की पुरानी मांग पर गंभीरता से निर्णय किया जा सकता है। विदर्भ के पृथक राज्य को लेकर भाजपा ने केन्द्र के सामने अपना समर्थन कई बार रखा। भाजपा ने ही कहा था कि, विकास में पिछड़ेपन को दूर करने तथा कृषि संकट और आत्म हत्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए पृथक विदर्भ राज्य का गठन जरूरी है। क्योंकि, इस क्षेत्र में कपास के किसान भारी कर्ज और सूखे के कारण आत्म हत्या करते रहे हैं। यह माना जा रहा है कि, पृथक विदर्भ राज्य भारत में एक पुरानी और बहस के विषय का हिस्सा रही है, जिसके बनाए जाने से विदर्भ के विकास में अद्भुत राजनैतिक सफलता प्रधानमंत्री को मिल सकती है, यह जानकारों का कहना है और संघ के मुख्यालय नागपुर में भी समय-समय पर विदर्भ पृथक राज्य विचार मंथन का प्रमुख विषय रहता है, ऐसा माना जाए तो गलत नहीं होगा। बता दें कि, विदर्भ महाराष्ट्र का पूर्वी हिस्सा है लेकिन इसमें महत्वपूर्ण बड़े-बड़े शहर नागपुर, वरदा, भंडारा, गोंदिया, चंद्रपुर, गढ़चिरौली, अमरावती, अकोला, बुल्ढ़ाना, यवतमाल तथा वाशिम क्षेत्र शामिल हैं, जो महाराष्ट्र के भू-भाग का 31 प्रतिशत हिस्सा हैं। जहां पर किसानों की समस्या को सुलझाने वाले नेता ही शिखर पर पहुंचते हैं। इसी के चलते यदि इस विशेष रिपोर्ट में यह लिखा जाए कि, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पृथक बुंदेलखंड राज्य तथा पृथक विदर्भ राज्य की परिकल्पना को आकार देने का काम शुरू कर दिया है और केन्द्र बिन्दुं में हिन्दुत्व, भगवा लहर, हिन्दू राष्ट्रवाद को सामने रखकर यदि बागेश्वरधाम के पं. धीरेन्द्र शास्त्री को बुंदेलखंड का पहला मुख्यमंत्री तथा नितिन गडकरी को संभावित पृथक विदर्भ राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय कर लिया हो, तो चौकिएगा मत…।
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