Sunflower Farming : सूरजमुखी की फसल ने बुंदेलखंड के खेतों में बिखेरा उजाला, किसानों की कमाई में जोरदार उछाल!

बुंदेलखंड की मेहनती मिट्टी अब नया सोना उगाने लगी है. जिस सूरजमुखी को अब तक इस क्षेत्र के किसान केवल तस्वीरों में देखते थे, वही अब उनके खेतों में खिलता दिखाई दे रहा है. सागर जिले के कृषि अनुसंधान केंद्र की पहल पर सूरजमुखी की खेती का जो प्रयोग हुआ, उसने उम्मीद से कहीं बेहतर नतीजे दिए हैं.

तिलहन अनुसंधान केंद्र से मिले डीआरएसएच-1 नाम की हाइब्रिड वैरायटी के बीज से लगाए गए पौधे 6 से 7 फीट तक ऊंचे हुए हैं. हर पौधे में जो फूल यानी ‘हेड’ बनता है, उसमें से 400 से 500 ग्राम बीज निकलने की संभावना है. ये बीज, जिनसे उच्च गुणवत्ता वाला खाद्य तेल निकाला जा सकता है, किसानों को न सिर्फ आत्मनिर्भर बना सकते हैं, बल्कि उनकी आमदनी को भी कई गुना बढ़ा सकते हैं.

सागर कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. डीके प्यासी बताते हैं कि जिनके पास गर्मियों में पानी की उपलब्धता है, वो सूरजमुखी को तीसरी फसल के रूप में ले सकते हैं. 110 दिनों में तैयार होने वाली यह फसल ना केवल कम समय में तैयार होती है, बल्कि कम लागत में भी अच्छी उपज देती है.

बीज बोते वक्त पौधों के बीच 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी रखनी होती है ताकि हेड विकसित होने में दिक्कत न हो. जब ये पककर तैयार हो जाते हैं, तो उनकी डंडियों को काटकर सुखाया जाता है और फिर हल्का-सा ठोकने पर बीज निकल जाते हैं.

ये बीज बाजार में बेचने के साथ-साथ खुद के लिए तेल निकालने में भी उपयोगी होते हैं.अगर किसान सामूहिक रूप से सूरजमुखी की खेती करें, तो यह सिर्फ लाभदायक फसल नहीं बल्कि एक आंदोलन बन सकता है. एक हेक्टेयर की खेती में लगभग 50,000 की लागत आती है और सामान्यतः 60,000 तक की आमदनी होती है. यदि बीजों की प्रोसेसिंग भी की जाए तो यह लाभ दो से तीन गुना तक बढ़ सकता है.

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