ललितपुर में इस बार भी मक्का खरीद शुरू होने का इंतज़ार किसान लगातार कर रहे हैं, लेकिन हालात पिछले वर्षों जैसे ही बने हुए हैं। सरकारी खरीद केंद्रों के खुलने के बावजूद किसानों को अब तक कोई राहत नहीं मिल पाई है। खेतों से तैयार फसल लेकर आने वाले किसान निराश लौट रहे हैं, क्योंकि विभागीय प्रक्रियाएँ अभी तक पूरी ही नहीं हो सकी हैं।
साल भर मेहनत के बाद किसान चाहते थे कि उनकी पैदावार का सही मूल्य सरकार की घोषित दर पर मिले। उम्मीद थी कि खरीद केंद्रों के खुलते ही उन्हें सीधे और सुरक्षित तरीके से लाभ मिल जाएगा। लेकिन, खरीद बंद रहने के कारण किसानों को अपनी मेहनत का अनाज औने-पौने दाम पर मंडी में ही बेचना पड़ रहा है। उनका कहना है कि जब सरकारी इंतज़ाम समय पर ही न शुरू हों, तो वे जाएँ तो जाएँ कहाँ?
र्सेटेलाइट सत्यापन ने बढ़ाई उलझन
इस बार खेतों की जाँच के लिए नई व्यवस्था लागू की गई। इसमें केवल वही फसल ऑनलाइन दिखाई दे रही है, जिसे पहले से दर्ज किया गया था। लेकिन कई किसानों की असल बोआई इस सूची से मेल नहीं खा रही। नतीजा यह कि खरीफ के मौसम में बोई गई असल फसल, विभागीय पोर्टल पर दर्ज ही नहीं हो पाई।
किसान जब पंजीकरण कराने पहुँचते हैं, तो उनके खेतों में मक्का दर्ज न होने की वजह से सत्यापन रुक जाता है। यही कारण है कि खरीद केंद्रों पर अभी तक एक भी बोरी की सरकारी खरीद शुरू नहीं हो सकी। किसानों का कहना है कि खेत तो वही हैं और फसल भी वही, फिर ऑनलाइन डेटा में यह नज़र क्यों नहीं आती?
समय कम, उम्मीदें बड़ी
खरीद अवधि अब बहुत थोड़े दिनों के लिए ही बची है। ऐसे में किसानों की सबसे बड़ी उम्मीद यही है कि विभाग जल्द से जल्द सत्यापन पूरा करे, ताकि खरीद केंद्रों पर ताला न लटका रहे। किसान चाहते हैं कि फसल की कीमत उन्हें सरकार की तय दर पर ही मिले, ताकि उनकी मेहनत का पूरा हक उन्हें मिल सके।

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