कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय जल्द ही बुंदेलखंड को प्याज उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाएगा। नई तकनीक से किसान यहां वर्ष में प्याज की तीन फसल लें सकेंगे। नई प्रजातियों में प्रति हेक्टेयर 300 क्विंटल प्याज की पैदावार होगी। अगले दो वर्षों में उत्तर प्रदेश में प्याज की खपत बुंदेलखंड से ही पूरी हो सकेगी। किसानों को इसके लिए प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
बुंदेलखंड में प्याज उत्पादन व भंडारण के लिए दो वर्षों से शोध चल रहा है। विज्ञानियों का कहना है कि यदि यहां प्याज भंडारण की सुविधा किसानों को उपलब्ध कराई जाए तो प्रदेश में प्याज की किल्लत दूर हो सकेगी। नई प्रजातियां विकसित कर किसानों को बारिश और जाड़े के मौसम में उत्पादन करवाया जाएगा। इससे किसानों की आय में इजाफा होगा।
कृषि विश्वविद्यालय ने खरीफ के लिए एल-883 प्रजाति तैयार की है। इसमें प्रति हेक्टेयर उत्पादन 300 क्विंटल है। खरीफ में ही एग्री फाउंड डार्क रेड प्रजाति है, इसमें 250 क्विंटल व भीमा सुपर में 250 क्विंटल उत्पादित होगी। रबी सीजन में एनएचआरडीएफ 2, 3 व 4, एग्री फाउंड लाइट रेड, भीमा किरन प्रजाति हैं, जिनका उत्पादन 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। बुंदेलखंड के किसानों को इन शोधित प्रजातियों के प्याज के बीज दिल्ली की संस्था एनएचआरडीएफ उपलब्ध कराएगी। विश्वविद्यालय ने करीब 200 क्विंटल बीज तैयार किया है, जिसे प्रशिक्षित किसानों को दिया जा रहा है।
बता दें कि बुंदेलखंड के सात जिलों में अभी करीब ढाई हजार हेक्टेयर में ही प्याज की खेती हो रही है। उत्तर प्रदेश में वार्षिक 12 लाख टन प्याज की खपत है। कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बांदा साढ़े सात लाख टन प्याज की कमी बुंदेलखंड से पूरी करेगा। अधिकांश किसान रबी सीजन की प्याज उत्पादित करते हैं, लेकिन इस वर्ष इन सभी जिलों में 11 हजार हेक्टेयर में छह लाख क्विंटल प्याज के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इसमें बांदा में ही अकेले 600 हेक्टेयर में 36 हजार क्विंटल प्याज का उत्पादन होगा।
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