मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा चित्रकूट का शांत तीर्थ शहर ऐतिहासिक बुनियाद को समेटा हुआ भगवान राम की भक्ति से परिपूर्ण है। इसके बारे में माना जाता है कि भगवान राम ने अपने निर्वासन के 14 साल में से 11.5 साल चित्रकूट में बिताए थे। महाकाव्य रामायण के अनुसार चित्रकूट वह स्थान है, जहाँ भगवान राम के भाई भरत उनसे मिलने आए थे और उन्होंने उन्हें अपने राज्य पर शासन करने के लिए अयोध्या लौटने के लिए कहा था।
पहाड़ों की सुंदर विंध्य श्रृंखला की छाया से घिरा चित्रकूट प्राचीन मंदिरों, घाटों, कुंडों और आश्रमों से आच्छादित है, जिनमें से लगभग सभी हिंदू महाकाव्य रामायण की कहानियों की यादें जीवित करते हैं। यह महाकाव्य उन पराक्रमी भगवान राम की कथा कहता है, जो अपनी पत्नी सीता और अपने भाई लक्ष्मण के साथ यहाँ रहे थे। यहाँ बड़ी संख्या में मंदिर स्थित हैं; चित्रकूट त्योहार के मौसम में भक्तों से भर जाता है, जो भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए इस शहर में आते हैं। यहाँ की मंदाकिनी नदी को पयस्विनी नदी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पानी के किनारे कई घाट बनाए गए हैं, जिससे तीर्थयात्रियों को पवित्र नदी में स्नान करने में आसानी रहती है, और वे शाम को घाटों पर होने वाली आरती में भी भाग ले सकते हैं। यहाँ की आरती भक्ति ऊर्जा से पर्यावरण को आप्लावित करती है, जिससे आगंतुक चित्रकूट की आधात्मिक भावना में पूरी तरह से डूब जाते हैं।
चित्रकूट की आध्यात्मिक विरासत युगों पुरानी है। कहा जाता है कि रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने भी यहाँ लंबा समय बिताया था। माना जाता है कि ऋषि अत्रि और सती अनुसुइया ने भी चित्रकूट में ध्यान किया था। कई लोग यह भी मानते हैं कि हिंदू धर्म के सर्वोच्च देवताओं ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने यहाँ अवतार लिया था।
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