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पत्रकारों पर दर्ज रंगदारी के मुकदमे कहीं षड्यंत्र तो नहीं?

  पत्रकारों पर फर्जी रंगदारी के मुकदमों को दर्ज होने से पूर्व प्रकरण की निष्पक्ष जांच नितांत आवश्यक है।लगातार देखने मे आ रहा है कि पत्रकारों पर रंगदारी के मुकदमे दर्ज हो रहे हैं। यह बात आज जर्नलिस्ट कांउसिल आफ इण्डिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग सक्सेना ने काउंसिल के सदस्यों से एक वर्चुअल मीटिंग के दौरान कही। उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है और इस पर चर्चा जरुरी है।



राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग सक्सेना ने कहा कि किसी भी समाचार को प्रकाशित करने से पूर्व दूसरा पक्ष लेना भी पत्रकारिता में आवश्यक है। अन्यथा एकपक्षीय समाचार को दिखाने पर समाचार की विश्वसनीयता पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है। लेकिन दूसरा पक्ष लेने गए पत्रकार पर रंगदारी का आरोप आसानी से लगाए जाते हैं। उन्होंने कहा ऐसे मे आवश्यक है कि प्रकरण की पहले निष्पक्ष जांच हो तथा जांच के आधार पर ही आगे की कार्यवाही हो। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बताया कि इस संदर्भ मे जल्द ही एक पत्र संगठन की ओर से केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री को भेजा जाएगा। उन्होंने कहा कि अभी तक ऐसा कोई कानून नहीं है जिससे पत्रकारों को सरंक्षण मिल सके ऐसे में गैर मान्यता प्राप्त पत्रकार आरोप लगते ही तुरंत तथाकथित व फर्जी पत्रकार हो जाता है।

इस विषय पर आसाम के पूर्व जज बिकास कुमार जी का कहना है कि आज तक जितने भी मुकदमें पत्रकारों पर हुए हैं, उनमें से किसी का भी दोष सिद्ध नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पत्रकारों पर फर्जी मुकदमें दर्ज हो रहे हैं। पूर्व जज का कहना है कि यह पत्रकारों को बदनाम करने की साजिश ही लगती है। 

वरिष्ठ पत्रकार डाॅ०आरसी श्रीवास्तव ने वर्चुअल मीटिंग में कहा कि लोकतंत्र में पत्रकारिता की अनिवार्यता इस संबंध में और बढ़ जाती है। उन्होंने कहा यदि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों द्वारा जाने अनजाने ऐसा कार्य किए जाने पर जिसमें आम शहरी को दिक्कत या असुरक्षा पैदा हो। तो ऐसी स्थिति में उसे उजागर करते हुए पेश किया जाए ताकि हर व्यक्ति अपने को सुरक्षित महसूस कर सके। डॉ०श्रीवास्तव ने कहा परंतु इस बीच परिभाषाएं बदल गई हैं। आज पत्रकारों पर रंगदारी के जो भी मुकदमे दर्ज हो रहे हैं उसमें अधिकतर फर्जी और पत्रकारों को प्रताड़ित करने के उद्देश्य से किए जा रहे हैं। अतः हम पत्रकारों पर मुकदमों को दर्ज होने से पूर्व प्रकरण की निष्पक्ष जांच किसी राजपत्रित या समकक्ष अधिकारी से करवाने की मांग करते हैं।

झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार झा ने कहा कि आज के समय में पत्रकारिता करना अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती साबित हो रही है। एक तरफ जहां सच को लिखना और दिखाना एक पत्रकार की नैतिक कर्तव्य है, वहीं सच को दबाने के लिए पत्रकारों पर हर तरफ से दबाव बनाया जाता है। बावजूद इसके हमारी इस पीड़ा को सुनने वाला कोई नहीं। उन्होंने कहा ऐसे में फर्जी मुकदमों को रोकने के लिए कारगर कानून के साथ ही पत्रकारों की पूर्ण सुरक्षा की समुचित व्यवस्था करने की जरूरत है।

इस विषय पर राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार राजूचारण ने कहा कि हमारे बुद्धिजीवी समाज में पत्रकारिता का महत्व काफी बढ़ गया है। नए मीडिया जगत में छोटे क्षेत्रीय अखबारों व पोर्टल चैनलों ने योग्यता के आधार को समाप्त कर दिया है। उन्होंने चिंता व्यक्त करते कहा पत्रकारिता से जिनका कहीं कोई लेना देना नहीं उन्हें थोड़े से पैसों के लालच में माईक आईडी के साथ आई कार्ड थमा दिया जा रहा है। ऐसे ही तथाकथित अपनी कमाई के चक्कर में लोगों को ब्लैक मेल करते हैं। यही वजह है कि अब लोगों का भरोसा पत्रकारों पर से उठने लगा है। 

वरिष्ठ पत्रकार संजय जैन ने प्रश्न चिन्ह लगाते कहा कि कहीं यह लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को धराशाई करने का षड्यंत्र तो नहीं है? आज देश में रंगदारी से संदर्भित सबसे ज्यादा दंश पत्रकारों को ही क्यों झेलना पड़ रहा है। संजय ने कहा कि आज अचानक ऐसा क्या हुआ कि पत्रकारों को लोकतंत्र में उपहास का पात्र बनाया जा रहा है। 

इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार डाॅ०एके राय का कहना है कि पत्रकारों को आए दिन भ्रष्टाचारियों, गुंडों मवालियों से दो-चार होना पड़ता है। वहीं जिस प्रकार समाज में भ्रष्टाचारिक आपराधिक गतिविधियां बढ़ी हैं वैसे ही आज पत्रकारों पर भी ऐसे ही लोग झूठे बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। ऐसे असामाजिक तत्व अपने विरुद्ध लिखे गए समाचारों पर बौखला कर अपने रसूख व पहुंच के बल पर पत्रकार को धमकाने से नहीं चूकते हैं। उत्तर प्रदेश बांदा से सुनील सक्सेना एवं हरियाणा से वरिष्ठ पत्रकार लोकेश दत्त मेहता ने भी पत्रकारों पर दर्ज रंगदारी के मुकदमों से पूर्व आधिकारिक जांच की मांग का समर्थन किया।

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