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राज्य से बेदखल करने के बाद राजा को आखिर क्यों ससम्मान वापस बुलाना पड़ा आल्हा को? (History Of Aalha Udal)

राज्य से बेदखल करने के बाद राजा को आखिर क्यों ससम्मान वापस बुलाना पड़ा आल्हा को? (History Of Aalha Udal)

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रण के डंका बाजन लागे, 
सज गए अहिरन के सरदार

वीरों की माटी बुंदेलखंड (Bundelkhand) में यह कहावत खूब प्रचलित है, जो मध्य-काल में आल्हा-ऊदल की शौर्य गाथा का शंखनाद करती है। आल्हा की उम्र उस समय बहुत कम थी, जब उनके पिता रणभूमि में दुश्मनों के हाथों मारे गए। ऐसी किंवदंती है कि पिता की मृत्यु के बाद राजा परमाल ने आल्हा का पालन पोषण किया। ऐसा भी माना जाता है कि वे राजा परमाल की पत्नी मलिन्हा के बहुत प्रिय थे। वे आल्हा को अपनी संतान की तरह लाड़-दुलार करती थीं।

माँ देवल आल्हा को अस्त्र-शस्त्र, तीर-तलवार, भाला, घुड़सवारी और आपस में लड़ाकर मल्ल युद्ध की शिक्षा दिया करती थीं। उनकी वीरता के चर्चे आस-पास के इलाकों में ही नहीं, बल्कि देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में भी खूब थे। यही वजह थी कि राजा परमाल ने उन्हें सेनापति घोषित कर दिया। आल्हा का नाम सबसे निडर सेनापतियों के रूप में लिया जाता था। अपने पद की सदैव गरिमा बनाए रखने के साथ ही आल्हा राजा परमाल के उपकारों को कभी नहीं भूले। उन्होंंने मरते दम तक खुद को राजा परमाल के लिए समर्पित कर दिया था।

रानी मलिन्हा के साथ ही राजा परमाल भी आल्हा (Aalha Udal) को अपनी संतान की तरह प्रेम करते थे और उन्हें अपना पुत्र मानते थे। राजा परमाल और रानी मलिन्हा का आल्हा के लिए अपार स्नेह रानी मलिन्हा के भाई माहिल को खूब खटकता था। वह हमेशा इस कोशिश में लगा रहता कि आल्हा को किस तरह नीचा दिखाया जाए। इसके लिए वह तरह-तरह के षडयंत्र रचने में भी पीछे नहीं रहता। लेकिन किसी न किसी वजह से हमेशा ही असफलता की धूल चाटकर रह जाता।

माहिल के षड्यंत्र में बुरी तरह फँस गए आल्हा 

एक बार आल्हा से जल-भूनकर महिल ने उसे राज्य से बाहर करने की पुख्ता योजना बनाई। उसने राजा परमाल को भड़काते हुए कहा कि वे आल्हा से अपना सबसे प्रिय घोड़ा माहिल को भेंट करने के लिए कहें। आल्हा यदि आपकी बात नहीं मानता है, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि वह आपके राज्य के लिए थोड़ा भी ईमानदार नहीं है। शुरुआत में तो राजा परमाल ने इसलिए लिए साफ मना कर दिया, लेकिन माहिल के अत्यधिक हठ की वजह से राजा परमाल इसके लिए सहमत हो गए। 

उन्होंने आल्हा को बुलाया और अपना प्रिय घोड़ा माहिल को भेंट करने के लिए कहा। आल्हा ने यह कहकर घोड़ा माहिल को देने से इनकार कर दिया कि एक सच्चा क्षत्रिय भले ही किसी के लिए अपने प्राणों की हँसते-हँसते आहुति दे दे, लेकिन अपने अस्त्र-शस्त्र और घोड़ा किसी को देना एक क्षत्रिय के उसूलों के खिलाफ है।

आल्हा का यह इनकार माहिल के रचे षड्यंत्र में आल्हा को बुरी तरह फँसा गया। आल्हा के घोड़ा न देने की बात से राजा के मन में यह बात घर कर गई कि माहिल की बात सही है और आल्हा राज्य के लिए ईमानदार नहीं है। उन्होंंने क्रोध में आकर आल्हा से राज्य छोड़ कर चले जाने को कहा। आल्हा अपने राजा के आदेश का पालन करते हुए महोबा से कन्नौज में जाकर बस गए।

पृथ्वीराज चौहान आल्हा के जाने की ही प्रतीक्षा कर रहे थे 

आल्हा के महोबा से जाते ही पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर हमले की घोषणा कर दी। हमले की सूचना मिलते ही रानी मलिन्हा ने राजा परमाल से आल्हा को राज्य में ससम्मान वापस बुलाने की विनती की। शुरुआत में राजा परमाल इसके लिए राजी नहीं हुए, लेकिन समय का फेर कुछ यूँ हुआ कि उनके पास आल्हा को वापस बुलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। राजा की सूचना मिलते ही आल्हा पृथ्वीराज चौहान से लोहा लेने वापस महोबा पहुँच गए। महोबा पहुँचते ही आल्हा ने अपने भाई ऊदल के साथ मिलकर बड़ी ही बुद्धिमानी से मोर्चा संभाल लिया। ऊदल बिल्कुल आल्हा की परछाई थे और वे वीरता में अपने भाई से बढ़कर ही थे। 

मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटे ऊदल 

ऊदल ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की और पृथ्वीराज चौहान व चौड़ा बक्सी के साथ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। आल्हा अपने भाई की वीरगति की खबर सुनकर अपना आपा खो बैठे और पृथ्वीराज चौहान की सेना पर मौत बनकर टूट पड़े। आल्हा की चंद्रहास खड्ग के एक ही वार से चौड़ा बक्सी का सिर घोड़ों की टापों के नीचे कुचल गया। वह समय ऐसा था कि आल्हा के सामने जो भी आया, मौत के घाट उतार दिया गया। 1 घंटे भीषण युद्ध हुआ, इसके बाद पृथ्वीराज और आल्हा का सामना हुआ। दोनों के बीच हुए भीषण युद्ध में पृथ्वीराज चौहान बुरी तरह घायल हो गए।

आल्हा के गुरु गोरखनाथ ने उन्हें पृथ्वीराज चौहान को बख्श देने का आदेश दिया। उन्होंने आल्हा से कहा कि यह तुम्हारे जैसे वीर के हाथों मारे जाने की योग्यता नहीं रखता है, इसका अंत मातृभूमि से दूर विक्षिप्त दशा में होगा, और यही इसके लिए सबसे उचित दंड होगा। गुरु गोरखनाथ के कहने पर आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को यवन अकांता मुहम्मद गौरी के लिए जीवित छोड़ दिया और बुंदेलखंड के वीर महायोद्धा आल्हा ने नाथ पन्थ स्वीकार कर लिया।

आल्ह-खण्ड गा-बजाकर युवक उतार देते थे मुगल सैनिकों को मौत के घाट  

इस प्रकार, आल्हा ने चन्देल राजा परमर्दिदेव (परमाल) के महान सेनापति के रूप में खुद की पहचान बनाई। जगनेर के राजा जगनिक ने आल्ह-खण्ड नामक एक काव्य रचा था, उसमें इन वीरों की 52 लड़ाइयों की गाथा का अत्यंत शालीनता से वर्णन किया गया है। मुगल सम्राट के समय ग्राम चौपाल पर युवक लय के साथ आल्ह-खण्ड गाते-बजाते थे और रणमत होकर एकांत मिलते ही मुगल सैनिकों का मार देते थे। सैनिकों की हत्या से दु:खी मुगल अकबर ने अपने नवरत्नों के संग मंत्रणा की। इसके समाधान के रूप में आल्ह-खण्ड काव्य का वीर रस प्रकाश में आया और फिर इसकी काट के लिए भक्ति काव्य की रचना की जाने लगी। बुंदेलखंड काव्य (Bundelkhand Poetry) के स्थान पर अवधी में सामायिक रामचरित्र मानस ग्रंथ प्रकाश में आया, जो अखण्ड रामायण गायन के रूप में सुनते-सुनाते हैं।

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