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विभिन्न मान्यताओं के लिए प्रचलित शारदा माता मंदिर में नहीं बिता सकता कोई भी रात

विभिन्न मान्यताओं के लिए प्रचलित शारदा माता मंदिर में नहीं बिता सकता कोई भी रात

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मंदिर के पट खुलने से पहले ही हो जाती है देवी माँ की पूजा 

मध्य प्रदेश की धरती पर स्थित है मैहर नगरी, जहाँ शारदा मैया (Sharda Temple) विराजित हैं। लम्बे समय से यह मंदिर भक्तों के बीच विशेष आस्था का केंद्र है। ऐसा कहा जाता है कि जंगलों के बीच ऊँची पहाड़ी पर विराजी शारदा मैया के इस मंदिर की खोज सबसे पहले बुंदेली वीर आल्हा और ऊदल नाम के दो भाइयों ने की थी। आल्हा और ऊदल को बुंदेलखंड (Bundelkhand) का मान माना जाता है। आल्हा माई के बहुत बड़े भक्त थे, इस प्रकार उन्होंने यहाँ 12 वर्षों तक माँ की तपस्या की थी, वे उन्हें शारदा माई कहते थे। इसलिए उनका नाम शारदा माई प्रचलन में आ गया। 

मंदिर में नहीं बिता सकता कोई भी रात 

इस मंदिर को लेकर कई तरह की प्राचीन कथाएँ प्रचलित हैं। मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति इस मंदिर में रात को रुक नहीं सकता, यदि कोई रुकता है तो उसकी मृत्यु हो सकती है। इसका कारण है आज भी इस मंदिर में हर रात को आल्हा और ऊदल (Alha-Udal) माँ के दर्शन करने आते हैं। ऐसा माना जाता है कि वे चिरंजीवी हैं। रात के समय मंदिर को बंद कर दिया जाता है, और मंदिर से जुड़े सभी लोग पहाड़ी से नीचे आ जाते हैं। कहा जाता है कि इसी समय दोनों भाई माँ के दर्शन करने आते हैं। इतना ही नहीं, दोनों मिलकर माँ का संपूर्ण श्रृंगार करके जाते हैं। यही कारण है कि किसी को रात के समय यहाँ नहीं रुकने दिया जाता। यहाँ तक कि मंदिर के पुजारी भी यहाँ रात में नहीं ठहरते हैं।

हर दिन दिखता है चमत्कार

ऐसा कहा जाता है कि जब प्रात: काल में मंदिर के पट खोले जाते हैं, तो वहाँ माँ के चरणों में जल के साथ ही एक फूल चढ़ा हुआ मिलता है। हालाँकि, आज तक कोई भी उन्हें देख नहीं सका है, लेकिन प्रमाण हर दिन मिलते हैं। आज भी रात की आरती के बाद मंदिर की साफ-सफाई होती है और फिर मंदिर के सभी कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इसके बावजूद जब सुबह मंदिर को पुन: खोला जाता है तो मंदिर में माँ की आरती और पूजा किए जाने के सबूत मिलते हैं। 

माना जाता है कि शाम की आरती के बाद जब सभी पुजारी मंदिर के कपाट बंद कर नीचे आते हैं, तो मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा की आवाज आती है। लोगों का कहना है कि माँ के भक्त आज भी यहाँ पूजा करने आते हैं। अक्सर वे सुबह की आरती करते हैं और हर दिन जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, तो कुछ न कुछ रहस्यमयी चमत्कार देखने को मिलते हैं। कभी मंदिर का गर्भगृह रोशनी से भर जाता है, तो कभी अद्भुत सुगंध से। अक्सर मंदिर के गर्भगृह में माँ शारदा पर एक अद्भुत पुष्प चढ़ा हुआ मिलता है। 

पहले दर्शन आल्हा के नाम 

कहा जाता है कि सबसे पहले, यहाँ तक कि मंदिर के पुजारी से भी पहले आल्हा (Alha) और ऊदल (Udal) माँ के दर्शन करते हैं। यह मान्यता आज भी बरकरार है। मंदिर की तलहटी में आज भी आल्हा देव के अवशेष मिलते हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है, जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। किंवदंती है कि इस तालाब में स्नान कर आल्हा ब्रह्म मुहूर्त में सबसे पहले माँ शारदा के दर्शन कर रक्त पुष्प चढ़ाते थे। इतना ही नहीं, तालाब से दो किलोमीटर आगे जाने पर आल्हा-ऊदल (Alha-Udal) का एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ आल्हा और ऊदल कुश्ती लड़ा करते थे। 

यहाँ प्रसिद्ध आल्हा मंदिर (Alha Temple) भी है। आल्हा मंदिर में आल्हा की तलवार और दोनों भाइयों की खड़ाऊ आम भक्तों के दर्शन के लिए आज भी रखी हुई है। आल्हा तालाब का संरक्षण प्रशासन द्वारा किया जाता है। सूचना बोर्ड में भी इस तालाब के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का वर्णन मिलता है। समय-समय पर यहाँ आल्हा पाठ का आयोजन भी किया जाता है।

Alha-Udal


मंदिर प्रांगण में आल्हा-ऊदल (Alha-Udal) की कुलदेवी का मंदिर

माँ शारदा मंदिर प्रांगण में स्थित फूलमती माता का मंदिर आल्हा-ऊदल (Alha-Udal) की कुल देवी का है। इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, हनुमान जी, माँ काली, माँ दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, ब्रह्म देव और जलापा देवी भी विराजित हैं। मैहर माता के मंदिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है, वे अपनी मनोकामना पूरी होने की प्रार्थना माँ के पास लेकर आते हैं। मान्यता है कि शारदा माता अपने बच्चों की हर मनोकामना पूरी करती हैं।

माता का नाम लेकर चढ़ते हैं हजारों सीढ़ियाँ

मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित इस मंदिर में भक्तजन 1063 सीढ़ियाँ लाँघ कर माता के दर्शन करने जाते हैं। सतना जिले में स्थित मैहर नगरी (Maihar Nagari) से 5 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत पर माता माँ शारदा का वास है। पर्वत की चोटी के मध्य में ही शारदा माता का मंदिर है। पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है। त्रिकूट पर्वत पर मैहर देवी का यह मंदिर भू-तल से छह सौ फीट की ऊँचाई पर स्थित है। इस मंदिर तक जाने वाले मार्ग में तीन सौ फीट तक की यात्रा गाड़ी से भी की जा सकती है। 

मैहर नाम के पीछे भी एक बड़ा तथ्य

माना जाता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। लेकिन उनकी यह इच्छा राजा दक्ष को मंजूर नहीं थी। वे भगवान शिव को भूतों और अघोरियों का साथी मानते थे। फिर भी सती ने कठोर तपस्या कर और पिता की इच्छा के विरूद्ध अपनी जिद से भगवान शिव से विवाह कर लिया। इसका परिणाम यह हुआ की राजा दक्ष ने भगवान शिव को कभी-भी हृदय से अपना जमाता नहीं माना। 

एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया। सती भी अपने पिता के घर यज्ञ के लिए पहुँची। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। अपने पति के अपमान से दुखी होकर सती ने यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी। 

भगवान शंकर को जब इसके बारे में पता चला, तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। उन्होंने यज्ञ कुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे। ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया। इस प्रकार, जहाँ भी भगवती सती के अंग गिरे, वहाँ प्रमुख शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिवजी को एक बार फिर से पति के रूप में प्राप्त किया। 

मैहर में गिरा था माँ का हार 

माना जाता है कि मैहर में सती माता का हार गिरा था। इस तथ्य के बारे में हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है। हालाँकि, सतना का मैहर मंदिर शक्ति पीठ (Maihar Shakti Peeth) नहीं है, फिर भी लोगों की आस्था इतनी अडिग है कि यहाँ साल भर माता के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ी रहती है। मैहर का मतलब है माँ का हार (माई का हार)। 

आल्हा (Alha) के मन में किस वजह से आ गया था वैराग्य

आल्हाखण्ड में गाया जाता है कि इन दोनों भाइयों का युद्ध दिल्ली के तत्कालीन शासक पृथ्वीराज चौहान से हुआ था। पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में हारना पड़ा था, लेकिन इस युद्ध में ऊदल वीरगति को प्राप्त हो गए थे। कहते हैं कि गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था। पृथ्वीराज चौहान के साथ उनकी यह आखरी लड़ाई थी। इसका कारण यह है कि आपने भाई से बिछोड़े के पश्चात आल्हा के मन में वैराग्य आ गया और उन्होंने संन्यास ले लिया था। 

ऐसी भी मान्यता है कि शारदा माँ के आशीर्वाद से भक्त आल्हा से युद्ध के दौरान पृथ्वीराज चौहान की सेना को पीछे हटना पड़ा था। माँ के आदेशानुसार आल्हा (Alha) ने अपनी साग (हथियार) शारदा मंदिर पर चढ़ाकर उसकी नोंक टेढ़ी कर दी थी, जिसे आज तक कोई सीधा नहीं कर पाया है। मंदिर परिसर में ही तमाम ऐतिहासिक महत्व के अवशेष अभी-भी आल्हा व पृथ्वीराज चौहान की जंग की गवाही देते हैं।

मंदिर का विराट इतिहास

विन्ध्य पर्वत श्रेणियों के मध्य त्रिकूट पर्वत पर स्थित इस मंदिर के बारे मान्यता है कि माँ शारदा की प्रथम पूजा आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा 9वीं-10वीं शताब्दी में की गई थी। मैहर पर्वत का नाम प्राचीन धर्मग्रंथ 'महेन्द्र' में मिलता है। इसका उल्लेख भारत के अन्य पर्वतों के साथ पुराणों में भी किया गया है। पहले मंदिर में पशु बलि सामान्य थी, लेकिन सन् 1922 में जैन दर्शनार्थियों की प्रेरणा से तत्कालीन महाराजा ब्रजनाथ सिंह जूदेव ने शारदा मंदिर (Sharda Temple) परिसर में जीव बलि को प्रतिबंधित कर दिया था।

पिरामिड के आकार के त्रिकूट पर्वत में विराजीं माँ शारदा का यह मंदिर 522 ईसा पूर्व का है। कहते हैं कि इस काल में नृपल देव ने यहाँ सामवेदी की स्थापना की थी, तभी से त्रिकूट पर्वत में पूजा-अर्चना का दौर शुरू हुआ। ऐतिहासिक दस्तावेजों में इस तथ्य का प्रमाण मिलता है कि सन् 539 (522 ईपू) चैत्र कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नृपलदेव ने सामवेदी देवी की स्थापना की थी। 

मंदिर के पास में एक प्राचीन शिलालेख है। वहाँ माँ शारदा के साथ भगवान नरसिंह की एक मूर्ति है। इन मूर्तियों की स्थापना नृपलदेव द्वारा शक 424 चैत्र कृष्ण पक्ष पर 14 मंगलवार, विक्रम संवत 559 अर्थात 502 ई. में की गई थी। देवनागरी लिपि में चार पंक्तियों वाला यह शिलालेख 3.5 से 15 इंच आकार का है। माता की मूर्ति पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी अंकित हैं। दुनिया के जाने-माने इतिहासकर कनिंघम ने इस मंदिर पर विस्तार में शोध किया था। ऐसे में, कनिंघम के प्रतीत होने वाले 9वीं व 10वीं सदी के शिलालेख की लिपि न पढ़े जाने के कारण ये आज भी रहस्य बने हुए हैं।

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