Chitrakoot : मां मंदाकिनी में दीपदान से जगमगाता है रामघाट, आस्था की परंपरा सदियों से जारी

चित्रकूट में दीपावली का पर्व किसी भव्य उत्सव से कम नहीं होता। मां मंदाकिनी नदी के तट पर हर साल लाखों श्रद्धालु दीपदान करने के लिए देश के कोने-कोने से पहुंचते हैं। ऐसा माना जाता है कि दीपदान करने से भगवान श्रीराम भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। इस पावन अवसर पर पूरा रामघाट सुनहरी रोशनी से जगमगा उठता है, मानो स्वयं प्रभु श्रीराम वहां विराजमान हों।


श्रीराम और चित्रकूट का अमिट संबंध

धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम ने माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ चित्रकूट में 11 वर्ष 6 माह का समय बिताया था। जब वे लंका विजय के बाद लौटे, तो उन्होंने यहां के साधु-संतों से मिलकर मां मंदाकिनी नदी में दीपदान किया। तब से लेकर आज तक यह परंपरा निरंतर जीवित है।श्रद्धालुओं का विश्वास है कि प्रभु श्रीराम ने वचन दिया था कि वे सदैव चित्रकूट में निवास करेंगे, और आज भी इस आस्था को हर दीपावली पर लाखों भक्त अपने दीपों के माध्यम से जीवित रखते हैं।

दीपदान की परंपरा बनी आस्था का प्रतीक

मान्यता है कि लंका विजय के उपरांत जब श्रीराम चित्रकूट लौटे, तो उन्होंने साधु-संतों और स्थानीय निवासियों के साथ मां मंदाकिनी में दीपदान किया। इसी क्षण से दीपदान का यह पर्व इस भूमि की पहचान बन गया। भक्त पहले मां मंदाकिनी में स्नान कर स्वयं को पवित्र करते हैं और फिर दीप प्रज्वलित करते हैं। दीपों की यह श्रृंखला जब नदी के जल में प्रतिबिंबित होती है, तो पूरा रामघाट सुनहरी आभा से नहा उठता है — यह दृश्य श्रद्धा, भक्ति और सांस्कृतिक परंपरा का अद्भुत संगम बन जाता है।

चित्रकूट की दीपावली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और भक्ति का ऐसा अद्वितीय संगम है जो सदियों से लोगों के हृदय में बसे भगवान श्रीराम के प्रेम और प्रकाश को जीवित रखे हुए है। मां मंदाकिनी में दीपदान की यह परंपरा हर वर्ष इस पावन भूमि को आलोकित करती है और भक्तों को ईश्वर से जोड़ने का सेतु बन जाती है।



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