Narottam Mishra: 'विकास से लेकर हेमा मालिनी तक नचवा दी'...फिर भी क्यों हार गए एमपी के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा? जानें 5 वजह
दतिया विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के राजेंद्र भारती ने गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा को चुनाव हरा दिया। नरोत्तम मिश्रा इस सीट पर लगभग 7742 वोटों से हारे। सियासी गलियारों में चर्चा है कि नरोत्तम मिश्रा चुनाव कैसे हार गए। हर किसी के पास अलग तर्क हैं। ग्राउंट पर क्या रहा हाल...आइए जानते हैं।
दतिया: मध्य प्रदेश के चौंकाने वाले नतीजों में एमपी के लगभग 12 मंत्री चुनाव हार गए। इन नामों में कई दिग्गज शामिल रहे। ऐसा नहीं है कि सिर्फ कैबिनेट मंत्री ही चुनाव हारे। निवास विधानसभा सीट से चुनाव लड़े केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते भी हार गए। इसके अलावा सतना लोकसभा सीट से 4 बार के सांसद गणेश सिंह भी सतना से चुनाव हार गए। खैर इन नामों में एक और नाम था, जिसने सबको चौंकाया और वो नाम था एमपी के गृहमंत्री रहे नरोत्तम मिश्रा का। वो दतिया विधानसभा सीट से चुनाव हार गए। उन्हें कांग्रेस के राजेंद्र भारती ने चुनाव हराया। इस हार के क्या कारण रहे, आइए जानते हैं।
अंदरूनी कलह
दतिया विधानसभा सीट पर बीजेपी में अंदरूनी कलह सबसे बड़ी वजह रही। कार्यकर्ताओं में एकजुटता का अभाव देखने को मिला। हालांकि गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने अपनी ओर से तमाम कोशिशें की, लेकिन इसे खत्म नहीं कर पाए।
कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी
दतिया विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में वोटर बीजेपी के कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी से नाराज दिखे। गृहमंत्री मिश्रा के नाम पर कार्यकर्ताओं की मनमानी की शिकायत कई बार लोगों ने की। जिसकी सुनवाई नहीं हो पाई।
बीजेपी नेता अवधेश नायक का कांग्रेस में जाना
इस क्षेत्र में ब्राह्मण समुदाय के वोट निर्णायक भूमिका में रहते हैं। अवधेश नायक के बीजेपी से कांग्रेस में जाने से वह निर्णायक वोट बंट गया। हालांकि अवधेश नायक को कांग्रेस ने पहले टिकट देकर अपना उम्मीदवार बदल लिया था। बावजूद इसके वह वोट बीजेपी से छिटके और मिश्रा 7742 वोटों से चुनाव हार गए।
एंटी इनकम्बेंसी
एक बड़ा फैक्टर ये रहा कि इस क्षेत्र में लोगों को अंदेशा नहीं था कि बीजेपी सत्ता में वापसी करेगी। चुनाव अभियान की शुरूआत से ही इस क्षेत्र में एंटी इन्कमबेंसी का फैक्टर काम किया। प्रदेश में बिना सीएम के चेहरे के चुनाव लड़ना और आखिरी तक पत्ते न खुलने से जनता में पार्टी के लिए नकारात्मकता हावी रही।
पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी
अंदरखाने खबर ये भी है कि इस बार नरोत्तम मिश्रा का मैनेजमेंट उनके बेटे सुकर्ण मिश्रा संभाल रहे थे। उन्होंने अपने हिसाब से कार्यकर्ताओं का एक कैडर तैयार किया, जिसमें युवाओं को वरीयता दी गई। अनुभवी और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को पूरे प्रचार अभियान में दरकिनार रखा गया। इस बात से उपजा असंतोष पोलिंग बूथ पर निकला और नरोत्तम मिश्रा चुनाव हार गए।
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