दिवारी नृत्य बुंदेलखंड का एक पारंपरिक लोकनृत्य है, जिसे दीपावली के अवसर पर विशेष रूप से ग्वाले प्रस्तुत करते हैं। यह नृत्य कृष्ण भक्ति और गोवर्धन पूजा से जुड़ा हुआ है और युद्धकला का अद्भुत प्रदर्शन माना जाता है। इसमें लगभग 6 फुट लंबी ठोस बाँस की लाठियों का प्रयोग होता है, जिनसे कलाकार एक-दूसरे पर प्रहार करते हैं और उसे कुशलता से रोकते भी हैं। नर्तक पैरों में घुंघरू, कमर पर लाल-पीले वस्त्र, सिर पर पगड़ी और मोर पंख धारण करके मंच पर उतरते हैं। ढोल-नगाड़ों की तीव्र थाप और दिवारी गीतों के बीच यह नृत्य वीरता, साहस और जोश का अद्वितीय प्रदर्शन करता है, जिससे दर्शक रोमांचित हो उठते हैं। धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व से भरपूर यह नृत्य दीपावली पर्व पर बुंदेलखंड की शौर्य और भक्ति परंपरा, की झलक प्रस्तुत करता है।
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